Bookstruck

सम्राट हर्षवर्द्धन

Share on WhatsApp Share on Telegram
« PreviousChapter ListNext »

५९० ई. में महान् सम्राट हर्षवर्द्धन का जन्म हुआ था। इनका शासनकाल ६०६ ई. से ५४७ ई. तक था। पुष्यभूति वंश के प्रतापी राजा प्रभाकरवर्धन हुए, जिनके दो पुत्र राज्यवर्धन और हर्षवर्द्धन थे और एक पुत्री राजश्री थीं। राज्यश्री का विवाह मौखरिराज ग्रहवर्मा के साथ हुआ था। प्रभाकरवर्धन की मृत्यु ६०५ ई. में हो गयी और थानेश्वर की गद्दी पर ज्येष्ठ पुत्र राजवर्धन बैठे। अभी ये गद्दी पर बैठे ही थे कि बंगाल के राजा शशांक और मालवा के राजा देवगुप्त ने मिलकर इनके बहनोई मौखरिराज ग्रहवर्मा का वध कर बहन राज्यश्री को कैद में डाल दिया। राज्यवर्धन ने मालवा. पर बड़ी सेना लेकर धावा बोल दिया और शत्रुओं को हराकर छोड़ा और राज्यश्री के लिए कन्नौज बढ़े। रास्ते में ही शशांक ने धोखे से इनका वध कर दिया। राज्यश्री गुप्त नामक एक व्यक्ति की मदद से कारागार से मुक्त होकर पति और भाई के निधन से दुःखी विन्ध्य के जंगलों में चली गयीं। इन्हीं हृदयविदारक घटनाओं के बीच हर्षवर्धन गद्दी पर बैठे।

सर्वप्रथम हर्षवर्धन ने बौद्ध भिक्षु दिवाकर मित्र के सहयोग से बहन राजश्री का पता लगाया। बहन के पास पहुंचे, तब तक चिता जलाकर बहन उसमें कूदना ही चाहती थीं। हर्ष ने उसे समझाया और किसी तरह वापस लौटाया। हर्ष के बहनोई का हत्यारा शशांक भयभीत होकर बंगाल भाग चला। बहन के मंत्रियों के अनुरोध पर हर्षवर्धन ने बहन के अनाथ हो चुके राज्य कन्नौज का भी शासन भार संभाला। कन्नौज को हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी बना लिया। हर्ष का अगला अभियान बहनोई के हत्यारे शशांक के विरुद्ध हुआ। रास्ते में कामरूप के शासक भास्कर वर्मा का एक दूत मिला, जिसने संधि का एक प्रस्ताव रखी। भास्कर वर्मा एवं शशांक परस्पर वैरी थे। हर्ष ने लाभ उठाया और भास्कर वर्मा साथ संधि कर लिया। हर्ष ने बहन को वापस बुला लिया.था विन्ध्य वन से, अब बंगाल पर हमला किया। भास्कर वर्मा ने हर्ष की सहायता की। प्रारंभिक चरण में विशेष सफलता नहीं हुई।

६३७ ई. तक शशांक बंगाल के अधिकतर भागों और उड़ीसा पर शासन करता रहा। शशांक की मृत्यु के बाद हर्ष और भास्कर वर्मा ने बंगाल पर फिर हमला किया और कब्जा पाने में सफलता पायी। भास्कर वर्मा ने पूर्वी बंगाल और हर्ष ने पश्चिमी बंगाल पर कब्जा कर लिया। मगध और उड़ीसा पर भी हर्ष ने कब्जा कर लिया। हर्ष. ने शासनारूढ़ होने के ६ वर्ष बाद कनौज पर कब्जा किया। राज्यवर्धन के निधन पर बंगाल के शशांक ने किसी गुप्त वंशीय व्यक्ति - (शायद देवगुप्त के भाई सूरसेन) को कन्नौज का शासक बना दिया था। हर्ष ने उससे कन्नौज का उद्धार किया और राज्यश्री की ओर से शासन किया कन्नौज पर। ६ वर्षों में अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर कन्नौज को अपने राज्य में विलीन कर लिया। हर्ष ने गुजरात के शासक ध्रुवसेन-द्वितीय पर ध्रुवभट्ट को हराया, बाद में ध्रुवसेन ने गुर्जर और अन्य पाश्ववर्ती शासकों की सहायता से सृदृढ़ हो गया।

अपनी पुत्री से हर्ष ने विवाह ध्रुवसेन से कर दिया और शत्रुता समाप्त हो गयी। वल्लभी (गुजरात) के शासक हर्ष के अधीन आ गये। चालुक्य शासक पुलकेशिन-द्वितीय से नर्मदा नदी के निकट या उत्तर में युद्ध हर्ष का ६३०-६३४ के बीच किसी समय हुआ। हर्ष जीते नहीं। ६४३ ई० में गंजम जिले के घोंगोडा नामक स्थान पर कब्जा हर्ष का पुलकेशिव-द्वितीय की मृत्यु के बाद हुआ। अपने शासन काल में हर्ष ने कुंभ मेले में सब कुछ दान में अर्पित कर बहन राज्यश्री की आधी साड़ी की लुंगी पहन कर शरीर के वस्त्र भी दान कर दिये थे। ऐसे महान सम्राट थे हर्षवर्धन।

« PreviousChapter ListNext »