Bookstruck

Share on WhatsApp Share on Telegram
« PreviousChapter ListNext »
(राग : दरबारी, चाल : ठुमल चलत)
नाटयगायननिपुण कलावतिची ही माया ॥धृ०॥
अंतरिचा भाव एक ॥ दाखवि वरपांगी एक
बाह्यांतर वृत्ति देख ॥ भिन्न भिन्न छाया ॥१॥
« PreviousChapter ListNext »