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जवाहरबाई का युद्ध कौशल

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राणा सांगा अपने ढग का अनूठा वीर था। अपने शरीर पर अस्सी घाव होते हुए भी सांगा सम्राम में डटे रहे और तनिक भी विचलित नहीं हुए। अपने गले तक तो इन्होने सीसा ही पी लिया था ताकि कोई दुश्मन इनका बाल भी बाका नहीं कर सके। जवाहरवाई इन्हीं राणा सांगा की रानी थी जो उन जैसी ही वीरांगना थी। इस रानी की देखरेख में तब पैंतीस हजार महिला सैनिक थे। पुरुषों की सेना के साथ यहा सदैव महिलाओं की सेनाए भी नहीं। महिलाओं का यह सैनिकगाह पुरुष सैनिकों से सदा अलग रहता। इसकी सारी व्यवस्था महिलाओं के ही जिम्मे रहती।

इन सैनिकों का विधिवत शिक्षण प्रशिक्षण होता। ये सेनाए सात-सात पहरों में रहती। केवल पहला पहरा पुरुषों का होता शेष सभी पहरों पर महिला सैनिक तैनात रहते। इनमे पुरुषों का जवाहरबाई का व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली नद्धा इम के मापन थर्राते थे।

दीपक जितनी बड़ी-बड़ी तेजोमय इसकी आंग्रे यी ! राणा सागा की मृत्यु के बाद जब अकबर की मेना द्वारा अभियाध्याम राजपूत मारे गये तब जवाहरबाई को शूरापन चला और वह अपने मैनिकों के साथ दुश्मन पर टूट पडी और बडी बहादुरी का परिचय दिया।

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