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दैव देत नवा घाव

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(राग : तिलककामोद, ताल : एकताल)
दैव देत नवा घाव ॥
अंधार सभोंवार । तयात असु दे ठाव ॥धृ०॥
अभिजात अभिमान, परघरीं बंदिवान
अपमान नसे सान । हा विचार घेत प्राण ॥१॥
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