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महिरत जीवाला छंद वेला

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(राग : सूरमल्हार, ताल : त्रिताल)
महिरत जीवाला छंद वेला । भय विरघळे नव मद घेता ॥धृ०॥
मादकतर धनमोह येता । आत्मभाव नच राहो ।
ध्यास भास वश । पाहतें मद मादक प्रतिबिंबाला ॥१॥
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