Bookstruck

महान् मत्स्य

Share on WhatsApp Share on Telegram
« PreviousChapter ListNext »
श्रावस्ती के निकट जेतवन में कभी एक जलाशय हुआ करता था। उसमें एक विशाल मत्स्य का वास था। वह शीलवान्, दयावान् और शाकाहारी था।

उन्हीं दिनों सूखे के प्रकोप के उस जलाशय का जल सूखने लगा। फलत: वहाँ रहने वाले समस्त जीव-जन्तु त्राहि-त्राहि करने लगे। उस राज्य के फसल सूख गये। मछलियाँ और कछुए कीचड़ में दबने लगे और सहज ही अकाल-पीड़ित आदमी और पशु-पक्षियों के शिकार होने लगे। अपने साथियों की दुर्दशा देख उस महान मत्स्य की करुणा मुखर हो उठी। उसने तत्काल ही वर्षा देव पर्जुन का आह्मवान् अपनी ठसच्छकिरिया' के द्वारा किया। पर्जुन से उसने कहा, "हे पर्जुन अगर मेरा व्रत और मेरे कर्म सत्य-संगत रहे हैं तो कृपया बारिश करें।" उसकी सच्छकिरिया अचूक सिद्ध हुई। वर्षा देव ने उसके आह्मवान् को स्वीकारा और सादर तत्काल भारी बारिश करवायी।

इस प्रकार उस महान और सत्यव्रती मत्स्य के प्रभाव से उस जलाशय के अनेक प्राणियों के प्राण बच गये।
« PreviousChapter ListNext »