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गंधर्व और अप्सरा

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गंधर्वों की उत्पत्ति कश्यप पत्नी अरिष्टा से हुई। हिमालय के उत्तर में देवलोक के पास ही गंधर्व लोक की स्थिति बनाई गई है। भारतीय पुराणों में यक्षों, गंधर्वों और अप्सराओं का जिक्र आता रहा है। यक्ष, गंधर्व और अप्सराएं देवताओं की इतर श्रेणी में माने गए हैं। कहते हैं कि इन्द्र ने 108 ऋचाओं की रचना कर अप्सराओं को प्रकट किया। मंदिरों के कोने-कोने में आकर्षक मुद्रा में अंकित अप्सराओं की ‍मूर्तियां सुंदर देहयष्टि और भाव-भंगिमाओं से ध्यान अपनी ओर खींच लेती हैं।
 
वेद और पुराणों की गाथाओं में उर्वशी, मेनका, रम्भा, घृताची, तिलोत्तमा, कुंडा आदि नाम की अप्सराओं का जिक्र होता रहा है। सभी अप्सराओं की विचित्र कहानियां हैं।  माना जाता है कि ये अप्सराएं गंधर्व लोक में ही रहती थीं। ये देवलोक में नृत्य और संगीत के माध्यम से देवताओं का मनोरंजन करती थीं।
 
गन्धर्वों के दूसरे नाम 'गातु' और 'पुलम' भी हैं। महाभारत में गन्धर्व नाम की एक ऐसी जाति का भी उल्लेख हुआ है, जो पहाड़ों और जंगलों में रहती थी। ऋग्वेद में गंधर्व वायुकेश, सोमरक्षक, मधुर-भाषी, संगीतज्ञ और स्त्रियों के ऊपर अतिप्राकृत रूप से आसक्त बतलाए गए हैं। 

शास्त्रों के अनुसार देवराज इन्द्र के स्वर्ग में 11 अप्सराएं प्रमुख सेविका थीं। ये 11 अप्सराएं हैं-कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रम्भा, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्तमा। इन सभी अप्सराओं की प्रधान अप्सरा रम्भा थी।

अलग-अलग मान्यताओं में अप्सराओं की संख्या 108 से लेकर 1008 तक बताई गई 

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