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कौशल्या

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भगवान राम की माता कौशल्या बहुत ही स्नेहशील  थीं। अपने पुत्र का वन-गमन उनके लिए सबसे दुखदायी घटना थीं। माता कौशल्या ने अपने पुत्र को इस प्रकार संस्कार दिए  कि विमाता कैकेयी के कुभावों से भी राम विचलित नहीं हुए और झट वनवासी होना स्वीकार कर लिया।

परिस्थितिवश कौशल्या जीवनभर दु:खी रही थीं | अपने वास्तविक अधिकार से वंचित होकर उनका जीवन करुण और दयनीय हो गया तथा  लेकिन फिर भी वे संयम से पातिव्रत्य, धर्म, साधुसेवा, भगवदाराधना का पालन करती रहीं। कौशल्या की कथा और चरित्र पर कई विद्वानों ने ग्रंथ लिखे हैं। रामायण और रामचरित मानस में उनके व्यक्तित्व का वर्णन विस्तार से मिलता है।

राजा दशरथ की तीन रानियां थीं। कौशल्या ने अन्य दोनों रानियों को कभी सौत नहीं समझा बल्कि उन्होंने दोनों को अपनी छोटी बहन समझकर ही उनसे व्यवहार किया। इस बारे में वे सुमित्रा (लक्ष्मण की माता) से कहती है-

सिथिल सनेहुं कहै कोसिला सुमित्रा जू सौं,
मैं न लखि सौति, सखी! भगिनी ज्यों सेई हैं॥

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