Bookstruck

बयान - 6

Share on WhatsApp Share on Telegram
« PreviousChapter ListNext »

 तेजसिंह ने कुँवर वीरेंद्रसिंह से पूछा - 'आप इस बाग को देख कर चौंके क्यों? इसमें कौन-सी अद्भुत चीज आपको नजर पड़ी?'

कुमार - 'मैं इस बाग को पहचान गया।'

तेजसिंह - (ताज्जुब से) 'आपने इसे कब देखा था?'

कुमार - 'यह वही बाग है जिसमें मैं लश्कर से लाया गया था। इसी में मेरी आँखें खुली थीं, इसी बाग में जब आँखें खुलीं तो कुमारी चंद्रकांता की तस्वीर देखी थी और इसी बाग में खाना भी मिला था, जिसे खाते ही मैं बेहोश हो कर दूसरे बाग में पहुँचाया गया था। वह देखो, सामने वह छोटा-सा तालाब है जिसमें मैंने स्नान किया था, दोनों तरफ दो जामुन के पेड़ कैसे ऊँचे दिखाई दे रहे हैं।

तेजसिंह – 'हम भी इस बाग की सैर कर लेते तो बेहतर था।'

कुमार - 'चलो घूमो, मैं ख्याल करता हूँ कि उस कमरे का दरवाजा भी खुला होगा, जिसमें कुमारी चंद्रकांता की तस्वीर देखी थी।'

चारों आदमी उस बाग में घूमने लगे।

कमरे के दरवाजे खुले हुए थे, जो-जो चीजें पहले कुमार ने देखी थीं, आज भी नजर पड़ीं। सफाई भी अच्छी थी, किसी जगह गर्द या कतवार का नामो-निशान न था।

पहली दफा जब कुमार इस बाग में आए थे तब इनकी दूसरी ही हालत थी, ताज्जुब में भरे हुए थे, तबीयत घबरा रही थी, कई बातों का सोच घेरे हुए था, इसलिए इस बाग की सैर पूरी तरह से नहीं कर सके थे, पर आज अपने ऐयारों के साथ हैं, किसी बात की फिक्र नहीं, बल्कि बहुत से अरमानों के पूरा होने की उम्मीद बँध रही है। खुशी-खुशी ऐयारों के साथ घूमने लगे। आज इस बाग की कोई कोठरी, कोई कमरा, कोई दरवाजा बंद नहीं है, सब जगहों को देखते, अपने ऐयारों को दिखाते और मौके-मौके पर यह भी कहते जाते हैं - 'इस जगह हम बैठे थे, इस जगह भोजन किया था, इस जगह सो गए थे कि दूसरे बाग में पहुँचे।'

तेजसिंह ने कहा - 'दोपहर को भोजन करके सो रहने के बाद आप जिस कमरे में पहुँचे थे, जरूर उस बाग का रास्ता भी कहीं इस बाग में से ही होगा, अच्छी तरह घूम के खोजना चाहिए।'

कुमार - 'मैं भी यही सोचता हूँ।'

देवीसिंह - (कुमार से) 'पहली दफा जब आप इस बाग में आए थे तो खूब खातिर की गई थी, नहा कर पहनने के कपड़े मिले, पूजा-पाठ का सामान दुरुस्त था, भोजन करने के लिए अच्छी-अच्छी चीजें मिली थीं पर आज तो कोई बात भी नहीं पूछता, यह क्या?'

कुमार - 'यह तुम लोगों के कदमों की बरकत है।'

घूमते-घूमते एक दरवाजा इन लोगों को मिला जिसे खोल, ये लोग दूसरे बाग में पहुँचे। कुमार ने कहा - 'बेशक यह वही बाग है, जिसमें दूसरी दफा मेरी आँख खुली थी या जहाँ कई औरतों ने मुझे गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन ताज्जुब है कि आज किसी की भी सूरत दिखाई नहीं देती। वाह रे चित्रनगर, पहले तो कुछ और था आज कुछ और ही है। खैर, चलो इस बाग में चल कर देखें कि क्या कैफियत है, वह तस्वीर का दरबार और रौनक बाकी है या नहीं। रास्ता याद है और मैं इस बाग में बखूबी जा सकता हूँ।' इतना कह कुमार आगे हुए और उनके पीछे-पीछे चारों ऐयार भी तीसरे बाग की तरफ बढ़े।

« PreviousChapter ListNext »