Bookstruck

दिल में धडकती हो तुम

Share on WhatsApp Share on Telegram
Chapter ListNext »

यूँ बार बार मुझपे क्यूँ भड़कती हो तुम।
कान लगा के सुन लो मेरे दिल में धड़कती हो तुम।।

इक रोज भी ना मिलूँ जो मैं तुमसे तो जान निकलने लगती है।
बताओ मुझे क्या इतना तड़पती हो तुम।।

मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहता।
जब किसी पायल सी खनकती हो तुम।।

सोचता हूँ चाँद, तारे लाऊँ आैर रख दूँ तुम्हारे कदमो में।
मेरी जान चाँद, तारों से भी ज्यादा चमकती हो तुम।।

यूँ दिन रात आवारगी अच्छी नहीं।
भला क्यूँ मेरे ख्वाबों में भटकती हो तुम।।  

वो लम्हा ही मुझे जन्नत का एहसास होता है।
जब अपने हाथों से मेरे सिर को थपकती हो तुम।।  

मैंने उस दिन से इत्र लगाना छोड़ दिया।
जब से मेरी साँसों में महकती हो तुम।।

Chapter ListNext »