उस औरत की वास्तविकता का मानचित्र....
<p dir="ltr">कुछ अलग सा क्यों लग रहा है उस दिन से, वही सुबह की अंगड़ाइयां, गरम चाय की प्याली, सूरज की सुनहली घूप, फिर तब से नया क्या हुआ जो इतनी व्यथित हूँ मै?<br>
रोड पर चलते भिखारियों को, लाचारों को, बेबशों और बेचारों को पहले भी तो देखा था फिर!....<br>
ईंट की रगड़ से निकली धूल से उसका मांग भरना दिल कचोट कर रह गया, मन में कई बाते उठी...कुछ गलत तो हुआ था उसके साथ...तन ढकने को वस्त्र तक नही था पास उसके, एक फटी सलवार और किसी दुप्पटे का चीर<br>
इतने में ही तन को छुपाये बैठी थी। सोचा पास जाकर पुछू की वह क्या और क्यों कर रही है? परन्तु हिम्मत नही जुटा पायी<br>
घर आकर खुद को बहुत कोशा...मुझे जाना था, पूछना था उससे कि क्या हुआ था उसके साथ?<br>
अब इंस्टिट्यूट से आते समय प्रायः नजरें उसको ढूँढा करती हैं परन्तु वह उस परिदृश्य में ना दिखी कभी।<br>
क्या यह कोई मिथक स्वप्न भर था मेरा?<br>
                              वास्तविकता<br>
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आँचल"अंकन"<br>
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रोड पर चलते भिखारियों को, लाचारों को, बेबशों और बेचारों को पहले भी तो देखा था फिर!....<br>
ईंट की रगड़ से निकली धूल से उसका मांग भरना दिल कचोट कर रह गया, मन में कई बाते उठी...कुछ गलत तो हुआ था उसके साथ...तन ढकने को वस्त्र तक नही था पास उसके, एक फटी सलवार और किसी दुप्पटे का चीर<br>
इतने में ही तन को छुपाये बैठी थी। सोचा पास जाकर पुछू की वह क्या और क्यों कर रही है? परन्तु हिम्मत नही जुटा पायी<br>
घर आकर खुद को बहुत कोशा...मुझे जाना था, पूछना था उससे कि क्या हुआ था उसके साथ?<br>
अब इंस्टिट्यूट से आते समय प्रायः नजरें उसको ढूँढा करती हैं परन्तु वह उस परिदृश्य में ना दिखी कभी।<br>
क्या यह कोई मिथक स्वप्न भर था मेरा?<br>
                              वास्तविकता<br>
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आँचल"अंकन"<br>
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