कहानी
<p dir="ltr">यह एक ऐसी कहानी है जिसमे पात्र तो कम ही हैं ,परन्तु रसिक पात्र है।<br>
जिसमे सभी को किसी न किसी से प्रेम है<br>
किसी को सुंदर  चंचला कन्या से प्रेम है तो कोई उनके प्रेम पत्र पढ़कर ही आनंदित हो जाते हैं। लेकिन अंकन का प्रेम अजब ही है उसे पारले जी बिस्कुट से प्रेम है ।<br>
          कहानी उन दिनों की है जब आधुनिक दूरसंचार यंत्र कम उपलब्ध थे।<br>
सूचनाओं के आदान- प्रदान का पत्र था,<br>
तमाम प्रकिया के पश्चात् पत्र एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचता था<br>
स्नातक उत्तरार्द्ध के छात्र रमेश शर्मा उन दिनों अल्लापुर के एक किराये के मकान में रह कर पढाई करते थे ,<br>
वही तीन मकान बाद चौथे मकान में सुंदरी देवी नाम की एक कन्या रहती थी ,<br>
शर्मा जी को देवी जी से प्रेम हो गया था ,परंतु बात नही हो पाती ,समस्या पत्र पहुँचाने की,कोई ऐसा डाकिया हो जिस पर परिवार वालों को संदेह न हो,<br>
तभी रमेश जिस दुकान पर चाय पीता था उनका एक 8-9 साल का लड़का था जिसका नाम प्रकाश था ,अचानक *लवलेटर विभाग*उसकी नौकरी लग गई,काम रमेश और सुंदरी की चिठ्ठी पहुँचाना वेतन प्रति चिठ्ठी एक लेमनचूस<br>
   अब क्या था पत्र व्यवहार सुचारू रूप से चलने लगा,<br>
रमेश का स्नातक पूर्ण होने वाला ही था कि सुंदरी का व्याह तय हो गया और रमेश बाबू का स्नातक के बाद व्याह का सपना सपना ही रह गया,<br>
स्नातक पूरा करके बड़े शहर चले गये और प्रकाश की नौकरी छूट गई।<br>
     मेरी प्रायः से इच्छा थी प्रकाश सी अच्छी नौकरी कि पर आज कल जिओ वालों प्रकाश जैसे बहुतों को बेरोजगार बना रखा है <br>
    अब मै भी अल्लापुर के उसी मकान में रहती हूँ जहाँ कभी रमेश बाबू रहते थे लगभग ग्यारह साल पहले अब मैं उसी प्रकाश की दुकान से अपने घर में राशन लाती हूँ पर कमबख्त इतना कंजूस है कि कभी एक टॉफी तक उधारी न करता <br>
पास में अन्य दुकान न होने की मजबूरी मुझे उसी के यहाँ से समान लेना पड़ता।<br>
एक दिन तांड की सफाई करते समय मुझे रमेश बाबू के प्रेम पत्र का ओ गट्ठर मिला जिसे वो वही छोड़ गए थे<br>
  एक दिन समान लेते समय मैंने प्रकाश से उस चिट्ठी वाले प्रकाश के विषय में चर्चा की तो वह उत्सुक उठा और मुझसे पत्र पढ़ने के लिए मांग की,<br>
बस उसी क्षण में मन में विचार आया क्यू न इसी घूस के बदले नौकरी मांग लूँ<br>
फिर क्या था मैंने एक शर्त रखी और मंजूर हो गयी, शर्त क्या थी प्रति चिट्ठी रोजाना एक पारले जी बिस्कुट ,मैं सुबह उठते एक चिट्ठी देकर एक पैकेट बिस्कुट ले आती ।<br>
            एक दिन कॉलेज से आई तो देख दरवाजे पर कबाड़ी समान लाद रहा था <br>
मैं वही थम सी गई , तभी बहन ने कहा अंकन मैंने आज सारा कबाड़ बेच दिया <br>
रमेश बाबू की तरह मेरा दिल टूटा और प्रकाश जैसी नौकरी छूटी।<br>
आज एहसास हुआ शायद इसे ही कहते है     पेट पे लात मारना।<br>
     आँचल दुबे </p>
जिसमे सभी को किसी न किसी से प्रेम है<br>
किसी को सुंदर  चंचला कन्या से प्रेम है तो कोई उनके प्रेम पत्र पढ़कर ही आनंदित हो जाते हैं। लेकिन अंकन का प्रेम अजब ही है उसे पारले जी बिस्कुट से प्रेम है ।<br>
          कहानी उन दिनों की है जब आधुनिक दूरसंचार यंत्र कम उपलब्ध थे।<br>
सूचनाओं के आदान- प्रदान का पत्र था,<br>
तमाम प्रकिया के पश्चात् पत्र एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचता था<br>
स्नातक उत्तरार्द्ध के छात्र रमेश शर्मा उन दिनों अल्लापुर के एक किराये के मकान में रह कर पढाई करते थे ,<br>
वही तीन मकान बाद चौथे मकान में सुंदरी देवी नाम की एक कन्या रहती थी ,<br>
शर्मा जी को देवी जी से प्रेम हो गया था ,परंतु बात नही हो पाती ,समस्या पत्र पहुँचाने की,कोई ऐसा डाकिया हो जिस पर परिवार वालों को संदेह न हो,<br>
तभी रमेश जिस दुकान पर चाय पीता था उनका एक 8-9 साल का लड़का था जिसका नाम प्रकाश था ,अचानक *लवलेटर विभाग*उसकी नौकरी लग गई,काम रमेश और सुंदरी की चिठ्ठी पहुँचाना वेतन प्रति चिठ्ठी एक लेमनचूस<br>
   अब क्या था पत्र व्यवहार सुचारू रूप से चलने लगा,<br>
रमेश का स्नातक पूर्ण होने वाला ही था कि सुंदरी का व्याह तय हो गया और रमेश बाबू का स्नातक के बाद व्याह का सपना सपना ही रह गया,<br>
स्नातक पूरा करके बड़े शहर चले गये और प्रकाश की नौकरी छूट गई।<br>
     मेरी प्रायः से इच्छा थी प्रकाश सी अच्छी नौकरी कि पर आज कल जिओ वालों प्रकाश जैसे बहुतों को बेरोजगार बना रखा है <br>
    अब मै भी अल्लापुर के उसी मकान में रहती हूँ जहाँ कभी रमेश बाबू रहते थे लगभग ग्यारह साल पहले अब मैं उसी प्रकाश की दुकान से अपने घर में राशन लाती हूँ पर कमबख्त इतना कंजूस है कि कभी एक टॉफी तक उधारी न करता <br>
पास में अन्य दुकान न होने की मजबूरी मुझे उसी के यहाँ से समान लेना पड़ता।<br>
एक दिन तांड की सफाई करते समय मुझे रमेश बाबू के प्रेम पत्र का ओ गट्ठर मिला जिसे वो वही छोड़ गए थे<br>
  एक दिन समान लेते समय मैंने प्रकाश से उस चिट्ठी वाले प्रकाश के विषय में चर्चा की तो वह उत्सुक उठा और मुझसे पत्र पढ़ने के लिए मांग की,<br>
बस उसी क्षण में मन में विचार आया क्यू न इसी घूस के बदले नौकरी मांग लूँ<br>
फिर क्या था मैंने एक शर्त रखी और मंजूर हो गयी, शर्त क्या थी प्रति चिट्ठी रोजाना एक पारले जी बिस्कुट ,मैं सुबह उठते एक चिट्ठी देकर एक पैकेट बिस्कुट ले आती ।<br>
            एक दिन कॉलेज से आई तो देख दरवाजे पर कबाड़ी समान लाद रहा था <br>
मैं वही थम सी गई , तभी बहन ने कहा अंकन मैंने आज सारा कबाड़ बेच दिया <br>
रमेश बाबू की तरह मेरा दिल टूटा और प्रकाश जैसी नौकरी छूटी।<br>
आज एहसास हुआ शायद इसे ही कहते है     पेट पे लात मारना।<br>
     आँचल दुबे </p>