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प्राचीन इतिहास

by ganesh B waghmode

*अंग्रेजो के आंने से पूर्व भारत में यह कोई जानता ही नही था की द्रविड़ Dravid और आर्य दो अलग-अलग जातियां है ।* यह बात तो देश के आने के बाद ही सामने लाई गई । अंग्रेजों को यह कहना भी इसलिए पड़ा क्योंकि वे *आर्यों को भारत में हमलावर बनाकर लाये थे । हमलावर की कथा चलाई गई और इसे सही सिद्ध करने के उद्देश्य से द्रविड़ की कल्पना की गई अन्यथा भारत के कसी भी साहित्यिक, धार्मिक या अन्य प्रकार के ग्रन्थ में इस बात का कोई उल्लेख नहीं मिलता की द्रविड़ Dravid और आर्य Arya कहीं बाहर से आए थे* । *संस्कृति के चार अध्याय* ग्रन्थ के *प्रष्ठ25* पर *रामधारी सिंह दिनकर* का कहना है कि जाति या रेस का सिद्धांत भारत में अंग्रेजो के आने के बाद ही प्रचलित हुआ, इससे पर्व इस बात का की प्रमाण नहीं मिलता कि द्रविड़ Dravid और आर्य Arya जाति के लोग एक दुसरे को विजातीय समझते थे ।  *वस्तुतः द्रविड़ Dravid आर्यों के ही वंशज है ।* *मैथिलि, गौड़, कान्यकुब्ज आदि की तरह द्रविड़ शब्द भी यहाँ भोगौलिक अर्थ देने वाला है ।* उल्लेखनीय बात तो यह है की आर्यों के बाहर से आने वाली बात को प्रचारित करने वाले में *मि. म्यूर* ,, जो सबके *अगुआ* थे, को भी अंत में निराश होकर यह स्वीकार करना पड़ा है की *“किसी भी प्राचीन पुस्तक या प्राचीन गाथा से यह बात सिद्ध नहीं की जा सकती की आर्य Arya किसी अन्य देश से यहाँ  आए “ (“म्यूर संस्कृत टेक्स्ट बुक’ भाग-2, पृष्ट 523 )* इस संदर्भ में *टामस बरो* नाम के प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता का “ *क्लारानडन प्रेस, ऑक्सफ़ोर्ड द्वारा प्रकाशित और ए. एल. भाषम द्वारा सम्पादित ‘कल्चरल हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया’ में छपे ‘दि अर्ली आर्यन्स’* में उद्धत यह कथन उल्लेखनीय है कि- “ *आर्यों ने भारत पर आक्रमण का न कहीं इतिहास में उल्लेख मिलता है और न इसे पुरातात्विक आधारों पर सिद्ध किया जा सकता है।” (‘आर्यों का आदि देश और उनकी सभ्यता’, प्रष्ठ-126 पर उद्धत)* इस सन्दर्भ में *रोमिला थापर* का यह कथन भी उल्लेखनीय है कि “ *आर्यों के सन्दर्भ में बनी हमारी धारणाये कुछ भी क्यों न हो’ पुरातात्विक साक्ष्यो से बड़े पैमाने पर किसी आक्रमण या आव्रजन का कोई संकेत नहीं मिलता गंगा की उपत्यका के पुरातात्विक साक्ष्यों से प्रकट नहीं होता कि यहाँ के पुराने निवासियों को कभी भागना या पराजित होना पड़ा था “ (आर्यों का आदि देश और उनकी सभ्यता’, प्र. 113पर उद्धत)* अंग्रेजो ने इस बात को भी बड़े जोर से उछाला है कि ‘आक्रान्ता आर्यों’ ने द्रविड़ Dravid के पूर्वजो पर न्रशंस अत्याचार किये थे । *वासम, नीलकंठ शास्त्री* आदि विद्वान् यद्यपि अनेक बार यह लिख चुके है कि *आर्य और द्रविड़ शब्द नस्लवाद नहीं है* । फिर भी संस्कृत के अपने अधकचरे ज्ञान के आधार पर बने लेखक, साम्राज्यवादी प्रचारक और राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि को सर्वोपरि मानने वाले नेता इस विवाद को आँख मींच कर बढ़ावा देते रहे है । पाश्चात्य विद्वानों ने *द्रविड़ Dravid की सभ्यता को आर्यों की सभ्यता से अलग बताने के लिए  हड़प्पा कालीन सभ्यता को बड़े सशक्त हथियार के रूप में लिया था ।* पहले तो उन्होंने हड़प्पा कालीन सभ्यता को द्रविड़ Dravid सभ्यता बताया किन्तु जब विभिन्न विद्वानों की नई खोजों से उनका *यह कथन असत्य हो गया* तो वे कहने लगे कि हड़प्पा के लोग वर्तमान ‘द्रविड़ Dravid नहीं, वे तो भूमध्य सागरीय द्रविड़ Dravid थे । अर्थात वे कुछ भी थे किन्तु आर्य नहीं थे । इस प्रकार की *भ्रांतियां जान-बूझकर फैलाई गई थी किन्तु आर्य Arya सत्य तो यह है कि हडप्पा की सभ्यता भी आर्य सभ्यता का ही अंश थी और आर्य सभ्यता वस्तुतः इससे भी हजारों-हजारों वर्ष पुरानी है ।*

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