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दरख़ुरे-क़हरो-ग़ज़ब जब कोई हम सा न हुआ

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दरख़ुरे-क़हरो-ग़ज़ब[1] जब कोई हम सा न हुआ
फिर ग़लत क्या है कि हम सा कोई पैदा न हुआ

बन्दगी में भी वह आज़ाद-ओ-ख़ुदबीं[2] हैं कि हम
उलटे फिर आए दर-ए-काबा अगर वा[3] न हुआ

सबको मक़बूल[4] है दावा तेरी यकताई[5] का
रूबरू[6] कोई बुत-ए-आईना-सीमा[7] न हुआ

कम नहीं, नाज़िश-ए-हमनामी-ए-चश्म-ए-ख़ूबां[8]
तेरा बीमार, बुरा क्या है, गर अच्छा न हुआ

सीने का दाग़ है वो नाला[9] कि लब तक न गया
ख़ाक का रिज़क़[10] है वो क़तरा जो दरिया न हुआ

नाम का मेरे है जो दुःख कि किसी को न मिला
काम[11] में मेरे है जो फ़ितना[12] कि बरपा[13] न हुआ

हर बुन-ए-मू[14] से दम-ए-ज़िक्र न टपके ख़ूं-नाब[15]
हमज़ा[16] का क़िस्सा हुआ, इ्श्क़ का चर्चा न हुआ

क़तरे में दिजला[17] दिखाई न दे और जुज़व[18] में कुल[19]
खेल लड़कों का हुआ, दीदा-ए-बीना[20] न हुआ

थी ख़बर गरम कि 'ग़ालिब' के उड़ेंगे पुरज़े
देखने हम भी गये थे, पे[21] तमाशा न हुआ

शब्दार्थ:
  1. त्रोध और अतयाचार का पात्र
  2. स्वच्छंद और अभिमानी
  3. खुला
  4. स्वीकार
  5. अदिव्रतीयता
  6. सामने
  7. आईने से चमकने वाला
  8. प्रेयसियो की आंख के समान होने का गर्व
  9. आह, रुदन
  10. खुराक
  11. कर्म, इच्छा
  12. संघर्ष
  13. उठना
  14. बाल की जड़
  15. शुद्द रक्त
  16. एक फारसी कथा का नायक
  17. टिगरिस दरिया
  18. अंश
  19. पूर्ण
  20. देखने वाली आँख
  21. पर, लेकिन
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