Bookstruck

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे

Share on WhatsApp Share on Telegram
« PreviousChapter ListNext »

आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ-सा कहें जिसे

हसरत ने ला रखा तेरी बज़्म-ए-ख़याल में
गुलदस्ता-ए-निगाह सुवैदा[1] कहें जिसे

फूँका है किसने गोश-ए-मुहब्बत[2] में ऐ ख़ुदा
अफ़सून-ए-इन्तज़ार[3] तमन्ना कहें जिसे

सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी[4] से डालिये
वो एक मुश्त-ए-ख़ाक[5] कि सहरा[6] कहें जिसे

है चश्म-ए-तर[7] में हसरत-ए-दीदार से निहां[8]
शौक़-ए-अ़ना-गुसेख़्ता[9] दरिया कहें जिसे

दरकार है शगुफ़्तन-ए-गुल हाये-ऐश[10] को
सुबह-ए-बहार पम्बा-ए-मीना[11] कहें जिसे

"गा़लिब" बुरा न मान जो वाइज़[12] बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे

शब्दार्थ:
  1. दिल का दाग़
  2. प्रेमी का कान
  3. प्रतिज्ञा का जादू
  4. अकेले रहने की पीड़ा की अधिकता
  5. एक मुठ्ठी मिट्टी
  6. रेगिस्तान
  7. आँख
  8. छुपा हुआ
  9. बेलगाम शौक़
  10. ऐश्वर्य के फूलों को खिलने के लिए
  11. शराब की सुराही पर रखा हुआ रुई के फाहा
  12. उपदेशक
« PreviousChapter ListNext »