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चुनिन्दा अश्आर- भाग पाँच

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४१.
न मिल ‘मीर’ अबके अमीरों से तू
हुए हैं फ़क़ीर उनकी दौलत से हम
४२.
काबे जाने से नहीं कुछ शेख़ मुझको इतना शौक़
चाल वो बतला कि मैं दिल में किसी के घर करूँ
४३.
काबा पहुँचा तो क्या हुआ ऐ शेख़ !
सअई [1] कर,टुक[2] पहुँच किसी दिल तक
४४.
नहीं दैर[3]अगर ‘मीर’ काबा तो है
हमारा क्या कोई ख़ुदा ही नहीं
४५.
मैं रोऊँ तुम हँसो हो, क्या जानो ‘मीर’ साहब
दिल आपका किसू से शायद लगा नहीं है
४६.
काबे में जाँ-ब-लब[4]थे हम दूरी-ए-बुताँ [5]से
आए हैं फिर के यारो ! अब के ख़ुदा के याँ से
४७.
छाती जला करे है सोज़े-दरूँ [6] बला है
इक आग-सी रहे है क्या जानिए कि क्या है
४८.
याराने दैरो-काबा [7] दोनों बुला रहे हैं
अब देखें ‘मीर’ अपना रस्ता किधर बने है
४९.
क्या चाल ये निकाली होकर जवान तुमने
अब जब चलो दिल पर ठोकर लगा करे है
५०.
इक निगह कर के उसने मोल लिया
बिक गए आह, हम भी क्या सस्ते
५१.
मत ढलक मिज़्गाँ[8] से मेरे यार सर-अश्के-आबदार[9]
मुफ़्त ही जाती रहेगी तेरी मोती-की-सी आब[10]
५२.
दूर अब बैठते हैं मजलिस में
हम जो तुम से थे पेशतर [11] नज़दीक़

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