
मीर तक़ी
by मीर तक़ी "मीर"
मीर तकी "मीर" उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर थे। मीर को उर्दू के उस प्रचलन के लिए याद किया जाता है जिसमें फ़ारसी और हिन्दुस्तानी के शब्दों का अच्छा मिश्रण और सामंजस्य हो। अहमद शाह अब्दाली और नादिरशाह के हमलों से कटी-फटी दिल्ली को मीर तक़ी मीर ने अपनी आँखों से देखा था। इस त्रासदी की व्यथा उनकी रचनाओं मे दिखती है।
Chapters
- आए हैं मीर मुँह को बनाए
- कहा मैंने
- बेखुदी ले गयी
- अपने तड़पने की
- हस्ती अपनी होबाब की सी है
- फ़कीराना आए सदा कर चले
- बेखुदी कहाँ ले गई हमको
- अश्क आंखों में कब नहीं आता
- गम रहा जब तक कि दम में दम रहा
- देख तो दिल कि जाँ से उठता है
- दिल-ऐ-पुर खूँ की इक गुलाबी से
- था मुस्तेआर हुस्न से उसके जो नूर था
- इधर से अब्र उठकर जो गया है
- जीते-जी कूचा-ऐ-दिलदार से जाया न गया
- जो इस शोर से 'मीर' रोता रहेगा
- इब्तिदा-ऐ-इश्क है रोता है क्या
- पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
- उलटी हो गई सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया
- न सोचा न समझा न सीखा न जाना
- दिल की बात कही नहीं जाती, चुप के रहना ठाना है
- दम-ए-सुबह बज़्म-ए-ख़ुश जहाँ शब-ए-ग़म
- गुल को महबूब में क़यास किया
- होती है अगर्चे कहने से यारों पराई बात
- इस अहद में इलाही मोहब्बत को क्या हुआ
- जो तू ही सनम हम से बेज़ार होगा
- काबे में जाँबलब थे हम दूरी-ए-बुताँ से
- मानिंद-ए-शमा मजलिस-ए-शब अश्कबार पाया
- मिलो इन दिनों हमसे इक रात जानी
- मुँह तका ही करे है जिस-तिस का
- शब को वो पीए शराब निकला
- तुम नहीं फ़ितना-साज़ सच साहब
- क्या कहूँ तुम से मैं के क्या है इश्क़
- आँखों में जी मेरा है इधर यार देखना
- सहर गह-ए-ईद में दौर-ए-सुबू था
- जिस सर को ग़रूर आज है याँ ताजवरी का
- महर की तुझसे तवक़्क़ो थी सितमगर निकला
- बारहा गोर दिल झुका लाया
- आ जायें हम नज़र जो कोई दम बहुत है याँ
- बात क्या आदमी की बन आई
- कोफ़्त से जान लब पर आई है
- मेरे संग-ए-मज़ार पर फ़रहाद
- ब-रंग-ए-बू-ए-गुल, इस बाग़ के हम आश्ना होते
- मीर दरिया है, सुने शेर ज़बानी उस की
- यार बिन तल्ख़ ज़िंदगनी थी
- शिकवा करूँ मैं कब तक उस अपने मेहरबाँ का
- अब जो इक हसरत-ए-जवानी है
- शेर के पर्दे में मैं ने ग़म सुनाया है बहुत
- चलते हो तो चमन को चलिये
- दुश्मनी हमसे की ज़माने ने
- यारो मुझे मुआफ़ करो मैं नशे में हूँ
- दिल से शौक़-ए-रुख़-ए-निको न गया
- आरज़ूएं हज़ार रखते हैं
- रही नगुफ़्ता मेरे दिल में दास्ताँ मेरी
- अंदोह से हुई न रिहाई तमाम शब
- इश्क़ में जी को सब्र-ओ-ताब कहाँ
- हम जानते तो इश्क न करते किसू के साथ
- यही इश्क़ ही जी खपा जानता है
- नाला जब गर्मकार होता है
- उम्र भर हम रहे शराबी से
- मसाइब और थे पर दिल का जाना
- नहीं विश्वास जी गँवाने के
- बेकली बेख़ुदी कुछ आज नहीं
- क़द्र रखती न थी मता-ए-दिल
- राहे-दूरे-इश्क़ से रोता है क्या
- मामूर शराबों से कबाबों से है सब देर
- मरते हैं हम तो आदम-ए-ख़ाकी की शान पर
- कुछ करो फ़िक्र मुझ दीवाने की
- हमारे आगे तेरा जब किसी ने नाम लिया
- आ के सज्जाद
- दिखाई दिये यूँ कि बेख़ुद किया
- ज़ख्म झेले दाग़ भी खाए बोहत
- न दिमाग है कि किसू से हम
- हर जी का हयात है
- चुनिन्दा अश्आर- भाग एक
- चुनिन्दा अश्आर- भाग दो
- चुनिन्दा अश्आर- भाग तीन
- चुनिन्दा अश्आर- भाग चार
- चुनिन्दा अश्आर- भाग पाँच
- चाक करना है इसी ग़म से
- गुल ब बुलबुल बहार में देखा
- अए हम-सफ़र न आब्ले




