Bookstruck

टक्कर

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मुझे भारत में आये दो साल से ऊपर हो गये, किन्तु आज जिस घटना का विवरण मैं अंकित कर रहा हूँ वह बड़ी ही विचित्र है। यों तो भारतवर्ष में कुछ भी विचित्र हो नहीं सकता। सारे संसार में सात विचित्रतायें हैं, किन्तु अकेले भारत में सात हजार विचित्रतायें मिलेंगी। यहाँ का प्रत्येक व्यक्ति विचित्र है, सबकी बात विचित्र है, सब प्रथायें विचित्र हैं और हम लोग इंग्लैंड से आकर यहाँ विचित्र हो जाते हैं।

एक रात क्लब से मैं तथा कैप्टन ऑसहेड कार पर चले आ रहे थे। उस दिन कर्नल डू नथिंग से बाजी लगी थी, वह हार गये और उन्हें चार बोतल व्हिस्की पिलानी पड़ी। उनमें से तीन बोतल कैप्टन ऑसहेड पी गये। सैनिक अफसर अपनी बुद्धि सदा रिजर्व में रखते हैं। यदि सदा यों ही व्यय किया करें तो रणक्षेत्र में कैसे कौशल दिखा सकते हैं। इसलिये मस्तिष्क के एक सुरक्षित कोने में वह बुद्धि रखते हैं और जब उनके रक्त में वह तरल पदार्थ भिन जाता है जिसे साधारण जनता 'मदिरा' के नाम से पुकारती है, किन्तु शिष्ट समाज जिसे अंगूर का रस कहता है, तब तो बुद्धि उसी में डूब जाती है। यही हाल कैप्टेन ऑसहेड का हुआ, कार का सम्भालना उन्हीं के हाथों में था। उनके रुधिर की गति, कार की गति एक ही थी। एक मोड़ के पास एक ओर से एक ताँगा आ रहा था। हमारी कार ने उसके पहिये के साथ टक्कर ली। साईस और सवार दोनों साथ देने पर तुले थे, दोनों गिरे! घोड़ा समझदार था, वह ताँगा लेकर भागा। कार का इंजन बन्द हो गया।

मुझ पहले पता नहीं था कि टक्कर, होश में लाने की एक दवा भी है। कैप्टन साहब को होश आ गया। वह कार से उतर पड़े, मैं भी उतर पड़ा। यह देखने के लिये कि बात क्या है। कार के पास दो व्यक्ति सड़क पर लेटे हुए थे। कार में कुछ विशेष बिगड़ा नहीं था। ठीक हो गयी। मैंने कहा - 'इन्हें अस्पताल ले चलना चाहिये।' कप्तान साहब बोले - 'तुम भी अंग्रेज होकर डरते हो। अंग्रेज तो वीर जाति होती है जो युद्ध में सेना की सेना का सफाया कर देती है, वह दो आदमियों की मृत्यु से डर जाये, यह कैसी वीरता है!' मैंने कहा - 'ठीक है। भारतवासी भी वीर होते हैं। मरने से डरते ही नहीं। मरने के लिये ही पैदा हुए हैं।' ऑसहेड ने पूछा - 'तुम्हें यहाँ आये कितने दिन हो गये?' मैंने कहा - 'दो साल के लगभग।' उन्होंने कहा - 'तभी तुम यह भी नहीं जानते कि भारतवासी प्लेग, कालरा और थाइसिस में कितने मरते हैं।' मैंने कहा कि इसके अध्ययन करने की मुझे कोई आवश्यकता नहीं पड़ी, किन्तु यदि इंग्लैंड में ऐसी घटना होती तो आप क्या करते। ऑसहेड बोले - 'अंग्रेज जाति के जीवन की रक्षा अति आवश्यक है क्योंकि उसी के द्वारा संसार में सभ्यता का प्रसार होगा और हो रहा है और संसार की व्यवस्था को ठीक अंग्रेज ही कर सकते हैं। उनकी रक्षा तो आवश्यक है।'

इसी बीच दो पुलिसमैन गश्त लगाते वहाँ पहुँच गये। हिन्दुस्तानी पुलिस बड़ी शिष्ट होती है। जब उन्होंने देखा कि भारत के शासकों के दो प्रतिनिधि वहाँ खड़े हैं, उन्होंने झुक कर सलाम किया। ऑसहेड के कुछ कहने के पहले मैंने उनसे कहा - 'इन्हें कार में रखो।' दोनों व्यक्तियों को कार में रखकर हम लोग सरकारी अस्पताल में पहुँचे।

कान्स्टेबल डॉक्टर को बुलाने लगा। डॉक्टर का पहले पता ही नहीं लग रहा था। यद्यपि अभी दस ही बज रहे थे। एक स्थान पर पता लगा कि डॉक्टर साहब एक मरीज देखने गये हैं। एक डॉक्टर महोदय गाना सुनने गये थे। एक डॉक्टर साहब अभी-अभी सोये थे। उन्हें कोई जगा नहीं सकता था।

मैंने इनके नौकर को डाँटा। किसी प्रकार उसने भीतर जा कर कहा और लौट कर बोला कि डॉक्टर साहब ने कहा है कि सवरे लाइये। मुझे डॉक्टर साहब की यह बात बहुत अच्छी लगी। दिन को बीमार अथवा घायल की जिस भाँति परीक्षा हो सकती है, रात को नहीं। इसी के साथ एक और बात है। रात-भर में यदि रोगी अथवा घायल की अवस्था सुधर गयी तो औषधि तथा डाक्टरी के व्यय से लोग बच जायेंगे और यदि नहीं तो व्यर्थ में डॉक्टर को कष्ट देने का कोई प्रयोजन भी नहीं। यह जितनी बातें हैं, डॉक्टर लोग हित के लिये ही कहते हैं। लोग समझें नहीं तो दोष किसका है?

मैंने नौकर से कहा कि जाकर कह दो कि लेफ्टिनेंट पिगसन तथा कैप्टन ऑसहेड आये हैं। सीजर के सम्बन्ध में सुना गया है कि वह गया, उसने देखा और विजय हो गयी। परन्तु अंग्रेजी नाम का जादू मैंने अभी देखा। डॉक्टर साहब सरकारी प्रान्तीय श्रेणी के कर्मचारी थे; हम लोगों से वेतन भी अधिक पाते होंगे, रोब-दाब भी काफी ही होगा, जैसा पहले उनके नौकर की बातों से पता चला। किन्तु अंग्रेजी नाम सुनते ही विद्युत गति उनके शरीर में आ गयी। नौकर से अपना बैठक खोलने को कहा और तुरन्त हम लोग बड़े आदर से बैठाये गये।

हम लोगों ने सब हाल सुनाया। फलस्वरूप वह अपने नौकर पर बहुत बिगड़े। बोले -'सर्वसाधारण के काम के लिये तुरन्त तैयार रहना चाहिय। इसने ठीक-ठीक हमें सूचना नहीं दी।' नौकर को गालियाँ भी दीं। हम लोगों से क्षमा माँगी, सिगरेट पिलायी। मैंने कहा - 'खतिरदारी तो पीछे भी हो सकती है, दो घायल हैं उन्हें देखना आवश्यक है।'

पुलिसमैन उन्हें ले गये। मैंने सब बयान किया। एक के सीने में चोट आयी थी, दूसरे की टाँगों में। चोट कुछ अधिक अवश्य थी, किन्तु भयानक नहीं थी। दस-पन्द्रह दिनों में ठीक हो जाने की सम्भावना थी।

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